आरबीआइ ने मुद्रा योजना में बढ़ते एनपीए को लेकर चिंता जताई है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने बैंकों को उनके द्वारा बांटे गए कर्ज पर नजर बनाए रखने की सलाह दी है। जैन ने सिडबी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि मुद्रा योजना ने बहुत से लाभार्थियों को गरीबी के जाल से बाहर निकाला है। लेकिन इस दौरान योजना में बढ़ते एनपीए ने नई चिंताएं खड़ी कर दी हैं। बैंकों को इससे निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस दौरान उन्होंने बताया कि मुद्रा लोन के तहत अब तक करीब 3.21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बांटा जा चुका है।
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि लाभार्थियों को कर्ज देने की प्रक्रिया में मूल्यांकन के दौरान ही कर्ज लौटाने की क्षमताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा कर्ज की अवधि पर भी नजदीकी नजर रखनी होगी। इस वर्ष जुलाई में सरकार ने संसद को बताया था कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान मुद्रा योजना के तहत दिए कुल कर्ज का 2.68 परसेंट हिस्सा एनपीए की श्रेणी में चला गया है। इससे पहले 2017-18 में यह करीब 2.52 परसेंट था। सरकार की ओर से कहा गया था कि योजना लागू होने के बाद से जून, 2019 तक 19 करोड़ लोन बांटे गए हैं। इसमें से 3.63 करोड़ खाते डिफॉल्ट साबित हो चुके हैं। एक आरटीआइ से मिली जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान मुद्रा लोन के एनपीए में 126 परसेंट का इजाफा हुआ है। इस दौरान यह 16 हजार करोड़ रुपये के पार चला गया है। गौरतलब है कि मुद्रा योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में की थी। इसका उद्देश्य नकदी के संकट का सामना कर रहे मध्यम और लघु उद्योगों को सस्ता कर्ज उपलब्ध कराना है। इस योजना में तीन तरह के लोन दिए जाते हैं। शिशु लोन के तहत अति लघु उद्योगों को 50 हजार रुपये तक का कर्ज दिया जाता है। किशोर लोन के तहत 50 हजार से लेकर पांच लाख रुपये तक और तरुण लोन के तहत पांच लाख से 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है।